Kedarnath Suprabhatam Lyrics केदारनाथ सुप्रभातम आरती | Pandavaas With HIndi Meaning
Kedarnath Aarti Kedarnath Suprabhatam Lyrics with Hindi Meaning
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ देवेश उत्तिष्ठ हृदयेशय ।
उत्तिष्ठ त्वमुमास्वामिन् ब्रह्माण्डे मङ्गलं कुरु ॥
शान्ताकारं शिखरशयनं नीलकण्ठं सुरेशं
विश्वाधारं स्फटिकसदृशं शुभ्रवर्णं शुभाङ्गम् ।
गौरीकान्तं त्रितयनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे शम्भुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
॥ अथ स्तवः ॥
हे मातर्धरणीधरेन्द्रतनये शम्भोर्मुखोल्लासिनि
नन्दिस्कन्दगजाननादिविनुते सेव्ये सतां सिद्धिदे ।
अस्मिन् प्रातःकाल ईशदयिते केदारनाथं प्रभुं
रामेत्यक्षरमुच्चरंस्तव पतिं सेवस्व सम्बोधयन् ॥1॥
गौरीगणेशकृतिकातनया गवीश-
श्चण्डादिभिश्च प्रमथैस्सह वीरभद्रः ।
तिष्ठन्त ईश शिवमन्त्रमनुस्मरन्ति
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥2॥
= हे ईश्वर! गौरी, गणेश, छः कृतिकाओं के पुत्र—कार्तिकेय, गोवंश के स्वामी—नन्दीश्वर, चण्ड-आदि प्रमथगणों के साथ वीरभद्र आदि खड़े होकर शिवमन्त्र का अनुस्मरण कर रहे हैं। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
नारायणो नरवरेण समर्चकस्ते
लोकैकशिक्षणमतिस्तपसाऽनुरागात् ।
त्वामर्चितुञ्च प्रभवन् विविधोपचारैः
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥3॥
= हे प्रभो! लोगों को शिक्षा देने की बुद्धि रखने वाले आपके अर्चक भगवान् नारायण, अपने भाई—नर के साथ, अत्यन्त अनुरागपूर्वक विविध उपचारों के द्वारा आपकी अर्चना करने की इच्छा लेकर उपस्थित हुए हैं। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
पद्मापतिश्च मघवाऽग्निः पद्मयोनि-
र्वायुर्यमश्च मदनो धनदोऽप्पतिश्च ।
द्वारस्थिता हि विबुधास्तव दर्शनार्थं
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥4॥
= हे प्रभो! पद्मा (लक्ष्मी) के पति—श्रीविष्णु, इन्द्र, अग्नि, कमल से जन्म लेने वाले—ब्रह्माजी, वायु, यमराज, कामदेव, कुबेर और जलपति वरुण आदि सभी देवतालोग आपके दर्शनों के लिए द्वार पर खड़े हैं। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
मन्दाकिनीजलतरङ्गपवित्रदेहा
भृग्वादयश्च मुनयस्सनकादिसिद्धाः ।
रुद्रानुवाकपठनात्प्रमुदास्स्तुवन्ति
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥5॥
= हे प्रभो! मन्दाकिनी के जल की तरंगों से जिनके शरीर पवित्र हो चुके हैं; ऐसे प्रसन्न रहने वाले भृगु-आदि मुनिगण तथा सनक-आदि सिद्धलोग रुद्रानुवाक (यजुर्वेदगत रुद्राष्टाध्यायी) के पाठ द्वारा आपकी स्तुति कर रहे हैं। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
रक्षोग्रहाश्च दनुजेन्द्रनरेन्द्रनागा
विद्याधरेन्द्रपशुपक्षिपिशाचयक्षाः ।
आशासते प्रमुदिता नमसां सहस्रं
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥6॥
= हे प्रभो! सभी राक्षस, ग्रह, श्रेष्ठ दानव एवं मनुष्य, नाग, विद्याधर, पशु, पक्षी, पिशाच, यक्ष आदि प्रमुदित होकर आपके प्रति अपने हज़ारों को नमस्कार समर्पित कर रहे हैं। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
पुण्यः पुराणनिगमागमशब्दराशि-
र्दिव्यं त्वदीयचरितं भवबीजनाशम् ।
गायन्नृलोकमखिलं विमलङ्करोति
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥7॥
= हे प्रभो! पुराण, वेद एवं तन्त्र की पुण्यमयी शब्दराशि संसारभाव का नाश करने वाले आपके दिव्य चरित्रों को गाकर सम्पूर्ण मनुष्यलोक को निर्मल कर रही है। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
भस्माक्षमण्डितवपुश्शिवभक्तवृन्दं
त्वन्नाममन्त्रजयघोषमुदाहरन्तम् ।
श्रीविश्वनाथ परिपालय कृत्तिवासः
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥8॥
= हे गर्जचर्म को धारण करने वाले विश्वनाथ! भस्म-रुद्राक्ष से मण्डित शरीर वाले तथा आपके नाममन्त्र के साथ ‘जय’ शब्द को जोड़कर (अर्थात् “जय शम्भो जय शंकर” इत्यादि) उद्घोष करने वाले इन शिवभक्तों के समूह का परिपालन कीजिए। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
हे पाण्डुपुत्रकृतपापविनाशदक्ष
पञ्चामृतैश्च फलपुष्पसुगन्धदीपैः ।
त्वत्पूजनं द्विजवरा इह भावयन्ति
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥9॥
= हे पाण्डवों के द्वारा किए गए गुरुहत्या-कुलसंहार-आदि पापों के विनाश में दक्ष प्रभो! पंचामृत, फल, पुष्प, सुगन्ध, दीप इत्यादि के द्वारा ये ब्राह्मणलोग आपके पूजन की इच्छा रखते हैं। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
स्नात्वाऽर्चितश्च कविभिश्शिवमन्दिरेऽस्मिन्
सन्ध्यामुपास्य परिपूरय नित्यकर्म ।
शास्त्रोक्तधर्मपरिपालनशिक्षणाय
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥10॥
= हे प्रभो! विधिवत् स्नान करके तथा इस शिवमन्दिर में पण्डितों के द्वारा पूजित होकर आप लोगों को शास्त्रोक्त धर्म के परिपालन की शिक्षा देने हेतु, आप सन्ध्योपासना करके अपने नित्यकर्मों (श्रीराम-नामजप-आदि) को परिपूर्ण कीजिए। हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
उत्तिष्ठ भक्तपरिपालनपारिजात
गोविप्रवेदपरिरक्षणदीक्षितेन्द्र ।
पुण्यात्मखेदपरिहारपरावतार
केदारनाथ भगवंस्तव सुप्रभातम् ॥11॥
= हे अपने भक्तों के सब ओर से पालन करने वाले कल्पवृक्ष! हे गौ-वेद-ब्राह्मण की सर्वत्र रक्षा करने का व्रत लेने वालों में श्रेष्ठ! हे पुण्यात्माओं के खेद का परिहार करने हेतु अवतार लेने वाले! हे भगवन् केदारनाथ! अब आपका सुप्रभात हो।
श्रीशङ्करार्यपरिपूजितदिव्यमूर्ते
ज्योतिर्मयेश्वर विभो करुणानिधीश ।
ज्ञानाङ्कुरोद्भवकरीं भवमुक्तिदात्रीं
दृष्टिं विधेहि दयया मयि हे कृपालो ॥12॥
= हे जगद्गुरु भगवान् श्रीशंकराचार्यजी के द्वारा पूजित दिव्य मूर्तिरूप! हे ज्योतिर्मय! हे ईश्वर! हे विभो—व्यापक! हे करुणानिधियों के सर्वश्रेष्ठ! हे कृपालो! दया करके मुझपर अपनी वह दृष्टि डालो; जो चित्त में शिवतत्त्वज्ञान के अंकुर को आविर्भूत करने वाली तथा इस संसार से मुक्ति देने वाली है।
॥ इति स्तवः ॥
Credits
श्रीकेदारनाथसुप्रभातस्तवः
स्वर : परमशैव पं. मृत्युञ्जय हिरेमठ जी महाराज (श्रीकेदारनाथ धाम)
रचयिता : अंकुर नागपाल (दिल्ली)
Production : Pandavaas (पण्डौ)